अभी कल की ही तो बात है…
ये घर कच्चा था, रिश्ते पक्के थे,
सबसे मेलजोल था, हौसले जगे थे,
रातों को सन्नाटे नहीं, होते रतजगे थे,
हमारे पैर नहीं, ये रास्ते थके थे
अभी कल की ही तो बात है…
ये घर कच्चा था, रिश्ते पक्के थे,
सबसे मेलजोल था, हौसले जगे थे,
रातों को सन्नाटे नहीं, होते रतजगे थे,
हमारे पैर नहीं, ये रास्ते थके थे
अभी कल की ही तो बात है…
अच्छे अंकों से, कुछ बड़ा बनना था,
पापा की गाड़ी, चलाना इक सपना था,
उम्मीदों के मौसम में, दिन-रात तपना था,
ये ज़मीं अपनी थी, ये आसमाँ अपना था
अभी कल की ही तो बात है...
नानी की हर कहानी में इक नयापन था,
दादी की घुड़की में भी अपनापन था,
गुल्ली-डंडे और कंचे का बचपन था,
अलहदा-सा, नया-सा, वो लड़कपन था
अभी कल की ही तो बात है...
मास्टरजी की कक्षा में पढ़े ही थे,
गणित-अंग्रेजी में हम अड़े ही थे,
बच्चों के लिए बड़े, सदा बड़े ही थे,
घर के हर जरूरी नियम, कड़े ही थे,
अभी कल की ही तो बात है...
हमारे दोस्त कम थे, पर जो थे अच्छे थे,
घर आए मेहमान, मन से सब सच्चे थे,
हम शरारत में अव्वल, पेशगी में कच्चे थे,
बड़े बनने को आतुर, लेकिन हम बच्चे थे
अभी कल की ही तो बात है...