8 सितंबर यानी अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस..
भारत जैसे देश में जहाँ बाबाओं, ज्योतिष-तंत्र-मंत्र-यंत्र और धर्मान्धता की बीमारी जरूरत से कहीं अधिक फैल रखी है, इस दिवस की अहमियत कहीं ज्यादा है। इसे प्रमुखता से विज्ञापित किया जाना चाहिए। हालांकि सरकारें ये काम कभी नहीं करने वाली। यहाँ निरक्षर तो निरक्षर हैं ही है, अधिकांश साक्षर भी केवल डिग्री के साक्षर हैं। कईं बार तो वे निरक्षरों को भी मात देते हैं। एक खास उदाहरण रखूं तो वह होगा वाट्सएप्प का मिस-यूज। मेरे ख्याल से पूरे विश्व में वाट्सएप्प का इस्तेमाल 'अफवाहें फैलाने के मामले में' सबसे ज्यादा हमारे ही देश में होता होगा। और ये काम हमारे साक्षर बुद्धिजीवी पूरे आन-बान-शान से करते हैं। गूगल नाम के औजार का प्रयोग करना तक नहीं सोचते और तुरंत आया हुआ मैसेज आगे सबको ब्रॉडकास्ट! दरअसल ये भी कुछ कुछ टीआरपी वाला खेल ही है। सबसे पहले ब्रेकिंग न्यूज परोसने की कड़ी में वाट्सएप्प के जरिए हम पढ़े-लिखे भी न्यूज़ ब्रॉडकास्टिंग सर्विसेज बन बैठे हैं। कहीं हिन्दू धर्म खतरे में हैं, कहीं कोई भगवान इतने खतरे में हैं कि उनके धाम से आया संदेश आगे 10 लोगों को न भेजा तो वे मेरे साथ बहुत ही बुरा करेंगे, कहीं 5 बरस पहले गुम हुआ बच्चा जो आज किसी नौकरी में लगा हुआ है और भारतभर में उसे आज भी व्हाट्सएप्प पे पूरी तन्मयता से ढूंढा जा रहा है, कहीं किसी फिल्मस्टार की फ़िल्म का सिर्फ इसलिए बहिस्कार करना है कि उनका कोई बयान किसी पार्टी या धर्म विशेष के लोगों को बुरा लगा इसलिए अब इसे देशव्यापी मुद्दा बना डालना है, यहीं हिंदुस्तान की सबसे बड़ी समस्या है। बाकी समस्याएँ तो चलती रहेगी।
दूसरी ओर बाबाओं की लीला और उनके अनुयायियों पर तो अब कुछ लिखना शेष रहा ही कहाँ हैं। तीसरी ओर ज्योतिष, तंत्र-मंत्र-यंत्र का इस देश में खास स्थान है और ये सदा रहेगा भी। बेरोजगारी की ऊंची दर, ऊल-जलूल व गैर-जरूरी सांस्कृतिक रीति-रिवाज और गिरता जीवन-स्तर इसे सदा पोषण देने का काम करता रहेगा। इस देश से महान दार्शनिक, लेखक और लीडर निकले हैं किंतु जीवन के कष्टों से तुरंत निजात पाने के लिए बस येन-केन-प्रकारेण जादू-टोना, मंत्र-ज्योतिष कैसा भी सहारा लेकर छुटकारा पाओ। जीवन की पहेली को शायद सम्पूर्ण दुनिया में इन्हीं लोगो ने समझा और सुलझाया है। साक्षर लोगों की तादाद इनमें कोई कम नहीं हैं।
ऐसे अनगिनत उदाहरण 'अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस' की हमारे देश मे अहमियत को दर्शाते हैं। यहाँ विज्ञान होते होए भी जैसे नगण्य है। महान आदर्शों के इस देश में सही मायने में साक्षर लोग बहुत कम हैं। ऐसे लोग विरले ही देखने को मिलते हैं।
इसलिए जरूरत है एक अरसे से रुके देश को आगे बढ़ने में धक्का लगाने की। आँखें मलिए, इन्हें उगते सूरज को देखने दीजिए। हवाओं को पहचानने दीजिए। तमाम चश्मे एक तरफ उतार के रख दीजिए। तमाम कुहरों से अपने मन-मस्तिष्क को आज़ाद कर दीजिए। खतरे में कोई और नहीं, आपकी स्वतंत्र सोच की शक्ति है जो किन्हीं बाहरी शक्तियों के नियंत्रण में हैं। सही मायने में सभ्य बनिए, समझदार बनिए। हर दिशा को देखिए और हर विचार का सम्मान कीजिए। विकसित राष्ट्रों के जन से सीखिए। वे लोग विकसित हैं क्यूंकि वे हमारी तरह ऊल-जलूल समस्याओं में अपने मन की साक्षरता खर्च नहीं करते। अर्थपूर्ण फिल्में देखिए, अर्थपूर्ण पुस्तकें पढ़िए, समाज में चरित्रवान सज्जनों के सान्निध्य में रहिए, विज्ञान में कुछ रुचि रखिए, ब्रेकिंग न्यूज़ से दूरी बनाइए, अपने बच्चों को समय दीजिए, अपने गुरुओं से दोबारा मुलाकात कीजिए, अपने बड़ों से उनके समय की गाथाएँ सुनिए, इतिहास पढ़िए, टीवी से दूरी बनाइए, कभी-कभी संभव हो तो खुद के लिए कुछ लिखिए, पेड़-पौधों या पशु-पक्षियों से रूबरू होइए। आपकी असल दुनिया को सिर्फ ये चीजें खुशनुमा बना सकती हैं। आज के युग में अक्षर के साक्षर तो बनना ही है, बुद्धि के साक्षर भी बनिये। दूसरों के विचार पढ़िए किन्तु अपने स्वतंत्र विचार भी खुद सृजित कीजिए। तब आप भी सही मायने में साक्षरता के पैरोकार होंगे।
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