Monday, October 1, 2018

इक दुनिया अक्सर खोजता हूँ..

इक दुनिया अक्सर खोजता हूँ..

सभ्यताओं से परे,
समाजों-रस्मों-रिवाजों से परे..
न जात न भेद,
जहाँ कोई 'दौलत' तक न हों..
न गुजरा न आने वाला कल हो,
जहाँ रोज बस आज हो..
संस्कृतियों का मिथ्या दम्भ न हों,
जहाँ सम जीव हो, सरल जीवन हो..

इक दुनिया अक्सर खोजता हूँ..
कटुताओं से परे,
द्वैष-परिवेश-विशेष से परे..
न आम न खास,
जहाँ कोई 'ओहदा' तक न हो,
न सूद हों न सूदन हों,
जहाँ सिर्फ एक ईश्वर हो..
भाँति-भाँति के आडम्बर न हों,
जहाँ नम चित्त हो, नयन पावन हों..

इक दुनिया अक्सर खोजता हूँ..