Wednesday, April 26, 2017

टीवी : एक आवारा-सा गरीब

आज की तारीख में टीवी देखो तो सैकड़ों चैनल्स और हजारों प्रोग्राम्स मिल जाएंगे। लगभग हर वाहियात विषय तक पर चैनल्स और प्रोग्राम्स है।

इतनी भीड़ में भी एक दूरदर्शन के शो 'किताबनामा' को छोड़ दो तो 'पुस्तकों' पर कहीं भी एक प्रोग्राम तक नहीं मिलता। सच तो यह है कि टीवी अब लगता ही नहीं कि ज्ञान का साधन रहा हो, यह एक आवारा-सा 'गरीब' जान पड़ता है जिसके पास देने के लिए कुछ भी नहीं है।

'नई सड़क' ब्लॉग के लेखक और एनडीटीवी के न्यूज़ एंकर, रविश कुमार अक्सर सच ही कहते हैं, "टीवी कम देखिए।" इस विषय में मेरी ही लिखी चंद पंक्तियाँ याद आती है..

फैला इनका गज़ब व्यापार है,
चैनल आज सौ से भी पार है,
फूहड़ हर ज्ञान और मल्हार है,
ना वो 'सुरभि' ना 'चित्रहार' है..