यह कविता उस सुंदर लड़की के लिए, जिसकी आँखों में मेरा चेहरा बसता है।
'शालिनी' के लिए...
ये सर्दियाँ भी तुम-सी लगने लगी है,
मेरी साँसों से बातें जो करने लगी है,
रात की खामोशी से निकल के ये धूप,
तुम्हे खोजती हर ओर चलने लगी है
वो सफेद बादल जो छंटने लगा है,
चाहतों में तुम्हारी यों घटने लगा है,
देखी न गयी उससे ठिठुरन तुम्हारी,
महीन कईं टुकड़ों में वो बँटने लगा है
ये जो फूल हैं क्यारियों में खिलते हुए
अपनी ख़ुशबू हवाओं में सिलते हुए
इनको उम्मीदें हैं कि किसी रोज तुम,
गुज़रोगी रूककर इनसे मिलते हुए
वो इक शोख तितली जो उड़ने लगी है
रंगीं दुनिया में तुम्हारी यों जुड़ने लगी है
उसे मालूम न थे मायने ख़ूबसूरती के
तुम्हे देखने को बार-बार मुड़ने लगी है
ये मन तसल्लियों के मौसम का प्यासा
कसमसाहटों के कुहरे-सी ये निराशा
इसे ख़्वाबों की आदत तो न थी मगर
अब हर ख़्वाब में है तुम्हारी ही आशा
ReplyDeleteबहुत खूब अंदाज-ए-बयाँ
धन्यवाद प्रेम जी।
ReplyDeleteKya baat h anand ji... gud going
ReplyDeleteAbhisog Ji, शुक्रिया।
ReplyDeleteJinda dil
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