..और हिंदी साहित्य सम्राट मुंशी प्रेमचंद जी की पुस्तक 'गबन' समाप्त की। गोदान में जहाँ ग्रामीण कृषक जीवन के विभिन्न रंगों को देखने का मौका मिलता है वहीं गबन आपको भारतीय मध्यम परिवार के रंग दिखाती है। यहाँ भी दुःख-दर्द के बीच मानव जीवन में गहरी जड़ें पसारे लालसाओं और भ्रष्ट आचारों के बादल बार-बार बरसते दिखाई पड़ते हैं जिनके कारण जीवन की सरलता और सौम्यता लगातार प्रभावित होती है और यह निम्न स्तर को गिरती चली जाती है।
मूल रूप से यह स्त्री के आभूषण प्रेम की लालसाओं को केंद्र में रखती गाथा है जो परिवार के सर्वनाश की ओर बढ़ती चली जाती है। इसके अलावा भ्रष्टाचार के बद से बदतर रूप, बीमारी का धीमा जहर और इसकी प्रचंडता वाली काली रात और अपने अस्तित्त्व को साबित करता तो कभी नकारता 'प्रेम' तत्त्व भी इस गाथा को बराबर प्रभावित करते रहते हैं। किरदारों को तो इतनी सूक्ष्म मीनाकारी से गढ़ा गया है कि मुझे नहीं लगता अंग्रेजी साहित्य में भी कहीं ऐसी बारीकियां देखने को मिलती हो। यह उपन्यास भी मानवीय संवेदनाओं का एक खास म्यूजियम है जहाँ कोई जीवन के उन तमाम अहसासों को उन तमाम भावों को जीता जाता है, जो हमारे दैनिक यथार्थ जीवन में हम अक्सर देखते महसूस करते रहते हैं।
इसे इसलिए पढ़ा जाना चाहिए ताकि हम हमारे जीवन मे उन समस्त लालसाओं को एक तीसरे पक्षकार की नज़र से देख सकें, जो हमारी मानसिक सोच को निम्न स्तर की ओर धकेल रहीं हैं और जिसके फलस्वरूप हमारे रिश्ते और फिर हमारा जीवन और इसकी दीर्घकालिक खुशियाँ भी धीरे-धीरे रंगहीन होने को अग्रसर हो रहे हैं। यह इसलिए भी पढ़ा जाना चाहिए कि कभी-कभी रिश्तों में हम कुछ जरूरी संवादों को इसलिए करने से रह जाते हैं कि उससे कहीं सामने वाला अपना बुरा न मान जाए और केवल इसलिए हम चुप्पी कर लेते हैं। यहीं चुप्पी आगे चलकर दीर्घ दुष्परिणाम से हमारा स्वागत करती है। कुल मिलाकर हिंदी साहित्य जगत का एक बेहद संवेदनशील और अनमोल उपन्यास है 'गबन'।
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