Saturday, December 26, 2015

दुनिया मोबाईल फोन्स की..

एक तो ये मोबाइल फोन्स की दुनिया भी दिलचस्प होने के साथ-साथ बड़ी उलझन भरी है। यहाँ हर रोज नए फोन्स आ जाते हैं। एक ही मॉडल के अगले नए-नए वर्ज़न आ जाते हैं, जो पिछले वर्ज़न को कमतर बना देते हैं। विकल्प इतने हैं कि खरीदने जाओ तो दिमाग का दही हो जाए और चकरघिन्नी होकर भी तय ना करता बने कि आखिर कौनसा लिया जाए?

सबसे पहले तो साधारण बटन फोन्स, फिर उससे आगे QWERTY Key Pad के नाम पर एक अलग श्रृंखला और फिर हद से भी आगे ये स्मार्टफोन्स की असीमित दुनिया। ऊपर से साधारण नामी-गिरामी, फिर चाइनीज़ कंपनियां और फिर बड़े ब्रांड्स के रूप में और ज्यादा उलझन। इसके बाद भी आप चाहे जो भी जैसा भी फोन ले लें, आपको अनेक ऐसे साथी मिलेंगे जो आपके फोन में नुक्स निकालेंगे ही निकालेंगे और कोई अन्य फोन जो उनके हिसाब से बेस्ट है, लेना चाहिए था कहकर दुःखी कर ही देंगे।

अब इस दुनिया की दूसरी तस्वीर भी बड़े कमाल की है। मुझे याद है बचपन में जब BSNL के उस Landline टेलीफोन, जिसे लगाने पर पूरी गली में मिठाई बांटी थी, की घंटी सुनने को कान खड़े रहते थे और बजते ही हर कोई अटैंड करने को तुरन्त उसकी ओर लपक पड़ता था। और वहीँ आज महंगे से महंगे मोबाईल फोन रखने वाले को भी कॉल करो तो सामने से फोन अटैंड नहीं किया जाता। 

खैर! अपनी-अपनी तसल्ली के हिसाब से अपना-अपना फोन खोजते रहिए। नए फोन के ख़्वाब देखिए। तसल्ली से बड़ी क्या चीज़ है। खरीदते रहिए।

Saturday, December 12, 2015

छोटी-सी बात.. (भाग-2)

एहसास ज़ख़्मी है हर एक आस ज़ख़्मी है..
सज़ा-ए-मुहब्बत में मन का लिबास ज़ख़्मी है...

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रात खामोश है.. साकी मदहोश है..
उनके होंठो की छुअन, पैमाने बेहोश हैं...

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दिखावे की दुनिया में सब दिखावे पे हैं फ़िदा
'प्रेम' की चिरैया किस्सों-कहानियों की बात हैं..

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सब अपने-अपने सलीके हैं, सब अपना-अपना शौक,
'खुलापन' किसी की आज़ादी, किसी की खुद को 'रोक'

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दरवाजों की दुनिया है ये, 'मन' तक यहाँ कैदी हैं।
बाहर वालों की बात छोड़ो, यहाँ घर के 'लंकाभेदी' हैं।

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आइनों को भी जिस से मोहब्बत हो
कायनात की विरासत, मेरी हूर हो तुम..

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ना अब वो वज़ीर रहे, ना अब वो प्यादे रहे
नेताओं के जो पूरे भी हो, ना अब वो वायदे रहे

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उसने आज़ादी और ख़्वाब के लिए सबसे मुँह मोड़ा,
माँ-बाप जिसके परवरिश में फुरसत तक ना निकाल पाए

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सब दास्तानें हैं इस दौर में अपनी-अपनी 'आजादियों' की,
माँ तक को नहीं बख्शा जाता ख्वाब के आड़े आने में

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टूटते रिश्ते, मौकापरस्ती और लालची ये दौर
बचपन बीता, जवानी बीती, आया है ये ठौर