Saturday, December 12, 2015

छोटी-सी बात.. (भाग-2)

एहसास ज़ख़्मी है हर एक आस ज़ख़्मी है..
सज़ा-ए-मुहब्बत में मन का लिबास ज़ख़्मी है...

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रात खामोश है.. साकी मदहोश है..
उनके होंठो की छुअन, पैमाने बेहोश हैं...

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दिखावे की दुनिया में सब दिखावे पे हैं फ़िदा
'प्रेम' की चिरैया किस्सों-कहानियों की बात हैं..

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सब अपने-अपने सलीके हैं, सब अपना-अपना शौक,
'खुलापन' किसी की आज़ादी, किसी की खुद को 'रोक'

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दरवाजों की दुनिया है ये, 'मन' तक यहाँ कैदी हैं।
बाहर वालों की बात छोड़ो, यहाँ घर के 'लंकाभेदी' हैं।

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आइनों को भी जिस से मोहब्बत हो
कायनात की विरासत, मेरी हूर हो तुम..

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ना अब वो वज़ीर रहे, ना अब वो प्यादे रहे
नेताओं के जो पूरे भी हो, ना अब वो वायदे रहे

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उसने आज़ादी और ख़्वाब के लिए सबसे मुँह मोड़ा,
माँ-बाप जिसके परवरिश में फुरसत तक ना निकाल पाए

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सब दास्तानें हैं इस दौर में अपनी-अपनी 'आजादियों' की,
माँ तक को नहीं बख्शा जाता ख्वाब के आड़े आने में

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टूटते रिश्ते, मौकापरस्ती और लालची ये दौर
बचपन बीता, जवानी बीती, आया है ये ठौर

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