एक बार बचपन में (अंदाजन मैं तब शायद चौथी कक्षा में था) स्कूल की छुट्टी वाले दिन चाचा की दूकान पे सारा दिन बिताने के बाद शाम को जब उनके साथ घर लौट रहा था, तब बहुत तेज आंधी चल रही थी। चाचा के दिमाग की खुराफात के अनुसार मैं पड़ोस के घर के दरवाजे (जहाँ इतनी जगह थी की मुझ जितना बच्चा अंदर धंस कर छुप सके) में खड़ा हो कर कुछ देर अंधड़ के दौरान छुपा रहा।
चाचा अंदर गए तो दादी ने पूछा Anand कहाँ हैं?
वो बोले "क्या? मुझे क्या पता, तुमको पता होना चाहिए।"
अब दादी अचानक से बहुत गंभीर हो गई और बोली "अरे लेकिन वो तो तुम्हारे साथ गया हुआ था ना सुबह से?"
चाचा अब अदाकारी करते हुए गंभीर होकर बोले- "हाँ लेकिन मैंने तो उसकी जिद करने पर दोपहर में घर जाने दिया था, आया नहीं था क्या?"
दादी तुरंत वार्ता काट उठकर भागते हुए बाहर आई और उड़ती मिट्टी में नहाई धुंधली गली में अपनी धुंधली-सी पथराई आँखों से जितना दूर देख सकती थी देखा। पर वहाँ मैं नहीं दिख पाया। उस दरवाजे में खड़े उस वक़्त मुझे कुछ बुरा भी लग रहा था, क्योंकि दादी दुःखी हो गई थी। अपने दुःखी पल में मैं उनके ही पास दौड़ा जाता था और उनके लाड़-पुचकार का असर भी जरूर होता था। सो यहीं सब सोचकर मैं दरवाजे में से निकला और अपने घर में दाखिल हुआ। दादी चाचा से बहुत गुस्से में जानकारी ले रही थी कि "मेरा छोरा कब कितने बजे वहाँ से घर को रवाना हुआ, तुमने उसे ऐसे कैसे भेज दिया, घर कितना दूर है, अब क्या किया जाए, जल्दी से कुछ करो, तुम यहाँ खड़े हो अभी तक!!!"
और तभी पलटकर उन्होंने मुझे देखा तो वे सारा माजरा समझ गए। हालांकि फिर भी वे तुरंत सबसे पहले मेरी और लपके और मुझे सीने से लगाया। बाद में उन्होंने चाचा को जो सुनाया वो बताने लायक नहीं।
खैर, आज जब भी कभी किसी बच्चे को अपने दादा-दादी को इग्नोर करते या उनपे गुस्सा होते देखता हूँ तो मुझे अपना ये बरसों पुराना किस्सा याद आता है। ऐसा नहीं है कि मेरी दादी मुझपे गुस्सा नहीं होती थी, बहुत गुस्सा होती थी। लेकिन परवाह किये जाने की जो यह सीमा है, वो हर बात से कही अधिक मायने रखती है। हम इंसान दूसरी ओर इस सकारात्मक बात को दरकिनार कर गंभीर सिर्फ इस बात पे ही होते हैं कि हमारे बड़े हम पर गुस्सा हुए तो आखिर हुए क्यों और ये ही एक नकारात्मक विचार अपनी आँखों के सामने चिपकाये फिरते रहते हैं। अपने दादा-दादी, नाना-नानी के इस सकारात्मक पहलू को एक बार महसूस करने की कोशिश कीजिए। पढ़ने के लिए शुक्रिया।