इस नश्वर शरीर में यह, आखिर कौन हूँ मैं..?
कुछ अधूरी जिज्ञासाओं का बैरंग-सा कैनवास हूँ मैं
अपने अधूरे रहे सपनों से आगे बढ़ा 'आज' हूँ मैं
पिता के आगे बचपन की वो दबी-सी आवाज हूँ मैं
सबसे शैतान होकर भी अपनी माँ का नाज़ हूँ मैं
अपने अधूरे रहे सपनों से आगे बढ़ा 'आज' हूँ मैं
पिता के आगे बचपन की वो दबी-सी आवाज हूँ मैं
सबसे शैतान होकर भी अपनी माँ का नाज़ हूँ मैं
अपनी नाकामियों में छिपी इक दबी-सी आस हूँ मैं
अभी तक जो पहना न गया वो नया लिबास हूँ मैं
हाँ कुछ लोगों के लिए उनके गले की फाँस हूँ मैं
बावजूद इसके लेकिन खुदी में बहुत खास हूँ मैं
अभी तक जो पहना न गया वो नया लिबास हूँ मैं
हाँ कुछ लोगों के लिए उनके गले की फाँस हूँ मैं
बावजूद इसके लेकिन खुदी में बहुत खास हूँ मैं
जो रहा सदा ही उम्मीदी के गुल में गुलशन
संकुचित-सा ठहरा-सा वो इक 'भ्रमर' हूँ मैं
अपने ही अजाबों में ग़मगीन आगे बढ़ता
निर्बाध-सा अविरल-सा वो इक 'भँवर' हूँ मैं
संकुचित-सा ठहरा-सा वो इक 'भ्रमर' हूँ मैं
अपने ही अजाबों में ग़मगीन आगे बढ़ता
निर्बाध-सा अविरल-सा वो इक 'भँवर' हूँ मैं
पीछे छूट चुके लम्हों में जीता आया पल हूँ मैं
जिसका अभी आना है बाकी वो नया कल हूँ मैं
कुछ अपनों के छलावों में छला गया छल हूँ मैं
किन्तु फिर भी शान्त झील का नया जल हूँ मैं
जिसका अभी आना है बाकी वो नया कल हूँ मैं
कुछ अपनों के छलावों में छला गया छल हूँ मैं
किन्तु फिर भी शान्त झील का नया जल हूँ मैं
दौड़ती-भागती जिंदगी में जैसे गौण हूँ मैं
चीखती आवाजों के शोर में भी मौन हूँ मैं
फिर भी अक्सर यह सोचता रहता हूँ
इस नश्वर शरीर में यह, आखिर कौन हूँ मैं..?
चीखती आवाजों के शोर में भी मौन हूँ मैं
फिर भी अक्सर यह सोचता रहता हूँ
इस नश्वर शरीर में यह, आखिर कौन हूँ मैं..?
बहुत खूब।
ReplyDeleteबहुत खूब।
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