देश की तरक्की के सिलसिले में सबका हाल देखो..
कोई राहुल गांधी को लेकर पागल है। कोई नरेंद्र मोदी को लेकर पागल है। कोई अरविन्द केजरीवाल को लेकर पागल है।
अब दौर वो रहा ही नहीं कि उस 'विचार' विशेष को लेकर पागल हुआ जाए जो असल में देश को तरक्की देने के लिए पैदा हुआ था। वो विचार कहीँ बहुत पीछे छूट चूका। अपने-अपने नेता के फैन लोग कहते हैं कि उन्हें अपने नेता पर पूरा भरोसा है। यह ठीक वैसा ही है जैसे एक भेड़ों का झुंड उस एक गड़रिये के पीछे-पीछे चलता जाता है जो जहाँ चाहे उन्हें ले जाए। सबको भेड़ बनने में बड़ा आनन्द आ रहा है। इस तरह उनके अनुसार गड़रिया सदैव सही है।
जिस हरी घास की तलाश का उन्हें कभी 'विचार' आया था वो विचार अब गौण हो चुका है। उन्हें तो हर रूखी-सूखी घास मंजूर है, क्योंकि कुछ ही समय में थोड़ी ना कोई घास के मैदान ऊग जाते हैं। घास के मैदान ऊगने में वर्ष लगते हैं। गड़रिया कोशिश कर तो रहा है। होते होते होगा।
ज़रा कभी किसी पेड़ की छाँव तले इत्मीनान से वक़्त मिले तो सोचियेगा.. वो विचार कहाँ गया और ये गड़रिया कहाँ ले जा रहा है?
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