हाल ही में Dominique Lapierre और Larry Collins की विश्व-विख्यात पुस्तक FREEDOM AT MIDNIGHT फिनिश की। यह पुस्तक इतनी व्यापक इतनी गहन है कि उस दौर के लगभग हर अहम विषय का समावेश किए हुए हैं। फिर भी माउंटबेटन, जिन्ना, नेहरू और गाँधी पर केंद्रित यह पुस्तक इतनी खास लगी कि एक बार इसे 30-40% पढ़कर पुनः वापिस से शुरू करनी पड़ी।
हमारे ही बादशाहों की काली करतूतों, जिन्ना के अलग मुस्लिम राष्ट्र बनाने की ज़िद, माउंटबेटन के चरित्र को अति-सावधानीपूर्वक उकेरते हुए एक हीरो की भांति चित्रित करने, बंटवारे के समय के खून-खराबे में दोनों ओर के लोगों के खून से सने किरदारों, गाँधी जी की हत्या में लिप्त राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के ही कुछ सदस्यों के अलावा जिस खास चीज़ ने मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित किया वह थी गाँधीजी का वह महान जीवन जो यकीनन कोई महात्मा (महान आत्मा) ही जीकर साकार कर सकता है, जो किसी इंसान के बस की बात नहीं। कितने अनिश्चितकालीन अन्न-व्रत, वो साप्ताहिक मौन व्रत, प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति, हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए क्रूर से भी क्रूर बस्तियों में अपने दम पर खुद जाना और वहाँ भाईचारा बहाल करवाना, माउंटबेटन की योजना के विरुद्ध अपने दम पर दो टुकड़े होने जा रहे एक वतन को जोड़े रखने का हर-संभव प्रयत्न कर टूटने की हद पर आ जाना। सच तो यह है कि इस एक किरदार ने पूरी पुस्तक में जान डाल रखी थी।
फिल्मों से इत्तर गर हम गाँधीगिरी को उसकी असली हद तक देखना परखना चाहें तो हमें इसे पुस्तकों में ही पढ़ना होगा। हाल के बरसों में गाँधी जी को बहुत से राजनीतिक और कुण्ठित लोगों ने बदनाम भी करने की कोशिश की है लेकिन ध्रुव तारे को भी क्या कोई धूल-कोई बादल छिपा सकता है भला? हो सके तो इस पुस्तक को पढ़िए, गाँधी को पढ़िए। कुछ ऐसा था जो अब इस वतन में नही रहा। नमन उस महान-आत्मा को...
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