इस विश्व में ठौर-ठौर पे अलग-अलग भाषाएँ हैं।
मैंने फिर भी, हिंदी जैसी सुन्दर भाषा कहीं नहीं देखी।
सबसे खास बात, यह बिंदी लगाती है। हिंदी में से बिंदी निकाल लो तो हिंदी, 'हिंदी' नहीं रहेगी। 14 सितंबर, 1953 से प्रतिवर्ष यह दिन हिंदी दिवस के तौर पर मनाया जाता है। 14 सितंबर व्यौहार राजेन्द्र सिंह का जन्मदिवस भी है जिन्होंने हिन्दी को भारत की राजभाषा बनाने की दिशा में अथक प्रयास किया।
हमारे देश में अंग्रेजी के पाठक 15 प्रतिशत से भी कम हैं, लेकिन अंग्रेजी अख़बार में विज्ञापन देना हिंदी अख़बार के मुकाबले कहीं ज्यादा महंगा है। लगभग हर माध्यम में विज्ञापन आंशिक या पूर्ण रूप से अंग्रेजी में परोसा जाने लगा है। लगभग हर उत्पाद की पैकेजिंग अंग्रेजी में पोती हुई मिलती है। लगभग हर दुकान, हर ऑफिस की होर्डिंग अंग्रेजी में लगी मिलती है। कुल मिलाकर अपने ही देश में हिंदी को अंग्रेजी के सामने निचले दर्जे की भाषा हम सब ने अपने व्यवहार में साबित कर दिया है लेकिन यह जानना भी आश्चर्य होगा कि यहीं भाषा फ़िजी, मॉरीशस, गुयाना, सूरीनाम, नेपाल में भी बोली जाती है। फ़िजी में तो इसे आधिकारिक भाषा का दर्ज़ा प्राप्त है। फिर न जाने क्यूं हम इसे अंग्रेजी के सामने हीन बना देते हैं।
मुझे वे दिन याद है जब नजदीक के एक शहर में जब मेरी नौकरी लगी थी और मैं ट्रेन से घर और ऑफिस के बीच साप्ताहिक यात्राएँ किया करता था, हिंदी के साथ ऐसा दुर्व्यवहार तब मैं बड़े ही असहनीय और निराश मन से अक्सर देखता था। ऐसे ही एक वाक़या मुझे याद आता है। मैं उस दिन ट्रेन के प्लेटफॉर्म को अलविदा करने के उन आखिरी पलों में, अपनी टिकट और बैग के साथ किसी तरह साधारण श्रेणी की बोगी में घुसकर सांस मात्र ले रही अच्छी-खासी भीड़ का हिस्सा हो सका। जाहिर है अगले किसी स्टॉप से पहले तो सीट मिलना नामुमकिन ही था। सफर खड़े-खड़े झेलना था। मेरे ठीक बायीं ओर एक 20-22 साल का नौजवान बड़ी ही बेबाकी, तसल्ली और मुस्कुराहट के साथ अपने फोन पे अपनी गर्लफ्रैंड के साथ गपशप में सफर काट रहा था। अगले डेढ़ घंटे मुझे खड़े-खड़े सफर ने नही, उसके फोन ने नहीं, उसकी बातों ने नहीं, बल्कि उसकी अंग्रेजी ने अधमरा कर दिया। उसे हिंदी आती थी मगर जिस जबरदस्ती से वह अंग्रेजी का 'उत्सर्जन' कर रहा था, मेरा मानना है कि दुनिया का कोई भी अंग्रेजी का शिक्षक उसे अंग्रेजी नहीं सीखा सकता। उसकी वोकेबुलरी बहुत ही सीमित थी और वो उन्हीं सीमित शब्दों से बड़ी ही निर्ममता और जबरदस्ती से अंग्रेजी घिस रहा था। खैर, रोज रोज की भागदौड़ में ऐसे अनेकों उदाहरण हैं लेकिन मैं मुख्य विषय पर आता हूँ- एक विदेशी भाषा को आखिर क्यूं इतनी अहमियत देना चाहते हैं हम? क्या व्यक्तिगत विकास हिंदी में संभव ही नहीं? क्या हिंदी के बजाय अंग्रेजी में बात करने से आपकी क्लास ऊंचे दर्जे की हो जाती है? क्या अंग्रेजी में हिंदी से अधिक व्यापकता, सभ्यता, तमाम तरह के भाव और रसों का पुट है?
कम से कम मैं तो ये नहीं मानता। भारत देश का साहित्य जगत कितने ही भारतीय अंग्रेजीदा साहित्यकारों को एक पलड़े में बिठाकर तौल लो, दूसरे पलड़े में अकेले मुंशी प्रेमचंद के आगे हल्का है। भारत देश के तमाम अंग्रेजीदा राजनेताओं के समस्त अंग्रेजी उवाचों को एक पलड़े में एक साथ तौल लो, हिन्दीभाषी अकेले अटल बिहारी वाजपेयी के उवाचों के आगे वह पलड़ा हल्का है। भारत देश के तमाम अंग्रेजीदा फिल्मी अदाकारों के समस्त इंटरव्यू मय उनकी हर स्पीच एक पलड़े में रखकर तौल लो, किन्तु दूसरे पलड़े में अकेले हिंदी-वक्ता अमिताभ बच्चन के स्पीच भारी ही पड़ेंगे। यह वे चेहरे हैं जो इन तमाम मिथकों पर रौशनी डालते हैं और इन्हें झुठलाते हैं कि हिंदी कोई दूसरे या तीसरे दर्जे की भाषा हो। ये चेहरे यह साबित करते हैं कि व्यक्तिगत विकास के नाम पे ये किसी विदेशी भाषा पर भरोसा नहीं करते। समाज में असली उच्च दर्जा क्या होता है यह हमें कोई विदेशी भाषा नहीं दिखा सकती।
इतना अवश्य है कि हमें अन्य भाषाओं का ज्ञान भी होना चाहिए। और हिंदी तो हमारी अपनी भाषा है। एक बाहरी भाषा को यदि हम नया समझ कर उसे अपनाने को विकसित हो जाने की ओर बढ़ने का कदम मानने लगे जाएं तो मैं कहूंगा यह हमारी अर्धविकसित सोच का बौनापन और ओछापन है। उड़ता तो पक्षी भी है लेकिन शाम को उसे अपने घोंसले में आना याद होता है। हिंदी ही हमारा घोंसला है हमारा असली घर है। उसके बाद दूसरे, तीसरे, चौथे नम्बर पर हम और जितनी मर्जी भाषाएँ सीखें। तब जाकर जो ज्ञान अर्जित होता है वह है असली व्यक्तिगत विकास। अपनी ही भाषा को दुत्कार कर दूसरी भाषा अपना लेना व्यक्तिगत विकास नहीं व्यक्तिगत ह्रास कहलाता है। इसलिए जब जरूरत हो, समय व उद्देश्य की माँग हो, तभी अंग्रेजी का प्रयोग कीजिए। इसके अलावा जहां तक संभव हो हिंदी का प्रयोग कीजिए। इसे और सीखिए। इसका स्वाद चखिए। इससे प्यार कीजिए। इस पर गर्व करिए। इसके एवज में यह जितना कुछ आपको देगी कोई और भाषा नहीं दे सकेगी।
(आलेख 'गूगल हिंदी इनपुट' एंड्रॉइड एप मय टूल की मदद से हिंदी में लिखा गया है)