Thursday, March 6, 2014

कितना अजीब-सा होता है जानां...

कितना अजीब-सा होता है जानां...

तुमको चुपके-चुपके से निहारना,
तुम देख ना लो इस से घबराना,
पहली बात करने की वो तमन्ना,
कोई और तुमको देखे तो जलना..

कितना अजीब-सा होता है जानां...

हिम्मतें जुटा कुछ शरारत करना,
तुम्हारे सामने सारी निडरता खो देना,
कहना हो कुछ.. कह कुछ और देना,
और पहला संवाद आखिर कर ही लेना..

कितना अजीब-सा होता है जानां...

खुशियों में तुमको शामिल करना,
उदासियों में तुमको याद करना,
हैरतों में तुमसे जवाब जानना,
मन्नतों में सिर्फ तुम्हें ही माँगना..

कितना अजीब-सा होता है जानां...
मिलने को तुमसे घण्टों इंतज़ार करना,
मिलने पर बातों के विषय तलाशना,
और धड़कनें थाम के फिर किसी रोज,
सारे हौसले जुटा तुमसे इज़हार करना..

कितना अजीब-सा होता है जानां...

आदतों में तुमको ही शुमार करना,
चाहतों में तुम्हारी खुद को बीमार करना,
हर मज़हब में तुम्हारी इनायत करना,
तुम्हारे अक्स में सारी कायनात देखना..

कितना अजीब-सा होता है जानां...

तुम्हीं से शुरू हो तुम्हीं में ख़त्म होना,
ज़िंदगी का तुम्हारी राजसी रत्न होना,
तुम्हारी खुशियों की शाही बज़्म होना,
तुम्हारी ज़िंदगी की एक नायाब नज़्म होना...

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