Tuesday, August 15, 2017

पुस्तक समीक्षा : गोदान

..और प्रेमचंद की 'गोदान' समाप्त की। अब तक यों लगा सुनील दत्त, नरगिस, राज कुमार स्टारर 'मदर इंडिया' से बेहतर और दर्दभरी गाथा भारतीय कृषक समाज के संदर्भ में कोई और नहीं, किन्तु एक अरसे से प्रेमचंद की गोदान पढ़ने की इच्छा प्रबल थी और जो कहानी में गोता खाया तो न निकलने की इच्छा हुई न इसने ही निकलने दिया। एक ऐसी गाथा जिसमें हर किरदार बड़ी ही गहराई से उकेरा हुआ मालूम हुआ।


हालांकि इस गाथा में कुछ बातें विशेष थी। पहली तो यह कि इसमें किसी भी किरदार के बारे में शत प्रतिशत यह नही कहा जा सकता कि वह आदर्श या अपराधी, हीरो या विलेन था। एक किरदार कब अपराधी होता है और कब हालात की चोटों से आदर्श बन जाता है यह वाकई सजीव चित्रण-सा उकेरा गया है और पढ़ते ही बनता है। दूसरी बात, पुस्तक के कवर पर सार में यह कहानी होरी पर केंद्रित बताई गई है जबकि मैं इससे असहमत हूँ। इसमें हर किरदार का इतना गहरा असर है कि उसे कमतर नहीं समझा जा सकता। तीसरी बात, ग्रामीण कृषक जीवन की बेहद गहरी कहानी होकर भी यह उतनी ही शहरी दार्शनिक, अखबार संपादक, व्यवसायी, राजनेता और नवयुगीन शहरी नारी की भी गाथा है क्योंकि इसमें उन सबके आचार-विचार तमाम कुंठाओं, लोभ-लालच और हृदय-परिवर्तन सहित समाहित है। चौथी बात यह कि तत्कालीन प्राचीन समय की होकर भी यह गाथा हममें से हर-एक के जीवन को बराबर छूती हुई वर्तमान परिवेश में भी तर्कसंगत हैं और मार्मिक-धार्मिक-चार्मिक किसी भी रूप में आज के भारतीय समाज की भी आईना ही है।


इसे पढ़ने वाले इसे केवल मनोरंजन के लिए पढ़ना चाहे तो यह इस गाथा के लिए अन्याय होगा। यह इसलिए पढ़ी जानी चाहिए कि हम स्वयं को इस आईने में खोजने का प्रयत्न करें और जैसा देख सकते हैं उसे वैसा ही स्वीकार करें। और हाँ, साहित्य के नाम पर साहित्य के अलावा 'सब-कुछ' परोसने वाले और युवा-मन पर छाए आज के चेतन भगत, दुरजोय दत्ता और रविंदर सिंह सरीखे लेखकों के फैन्स को ये पुस्तक नहीं पढ़नी चाहिए, यह उनके लिए सही पुस्तक नहीं हैं और वे केवल निराश ही होंगे।

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