Monday, November 26, 2018

पुस्तक समीक्षा : शिखर पर मिलेंगे

..और ज़िग ज़िग्लर की पुस्तक 'शिखर पर मिलेंगे' समाप्त की। सेल्फ-हेल्प श्रेणी की यह पुस्तक नकारात्मक सोच से परे चलने, किसी हारे हुए व्यक्तित्व के बहानों, आत्म-विश्लेषण के कदमों और सफल-सार्थक जीवन हेतु विभिन्न बेहतरीन व्यावहारिक सिद्धांतों की अच्छी व्याख्या करने के साथ-साथ कहीं-कहीं जरुरत से ज्यादा राजनीतिक और धार्मिक बातें भी उगल जाती है, जिन्हें पाठक स्वयं अपने आत्म-विश्लेषण से स्वीकार या अस्वीकार करे तो अच्छा होगा। कहीं-कहीं यह मूल विषय से भटक भी जाती है तो कहीं-कहीं शब्द-सीमा इतनी भी खींची गई है की अध्याय समाप्त कर देने की लालसा बोरियत में तब्दील होने लगती है। हालांकि फिर भी यह पुस्तक अपने आप में एक बेहतर पुस्तक है उन तमाम आकर्षक शीर्षक और मनमोहक कवर डिजायनिंग के साथ उपलब्ध पुस्तकों से, जो सेल्फ-हेल्प श्रेणी में होकर भी मस्तिष्क पर किंचित भी प्रभाव नहीं छोड़ पाती।

पाठ्य सामग्री की जहाँ तक बात की जाए, कुछ खास बातें हैं जिनका जिक्र करना जरुरी समझूंगा। पुस्तक के प्रारम्भ में एक जगह बताया गया है कि सफलता प्राप्त करने के लिए स्वस्थ आत्म-छवि अत्यंत महत्वपूर्ण है। जिस तरीके से आप अपने को देखते हैं, उसके विपरीत ढंग से आप नियमित प्रदर्शन नहीं कर सकते। आपकी आत्म-छवि आपको सीढ़ी के शिखर पर ले जायेगी अथवा तहखाने में ले जाने वाले एस्केलेटर पर रख देगी। आत्म-छवि पर विस्तार में लिखा गया है।

प्रेम-सम्बन्ध मधुर बनाने अथवा मधुर बनाए रखने के बारे में एक जगह लिखा है कि शुद्ध चांदी की तरह प्यार भी अपनी चमक खो देता है यदि इस पर प्रतिदिन रूचि, लगाव एवं प्रेम की अभिव्यक्ति की पॉलिश न की जाये। दुर्भाग्य से बहुत से युगल एक-दूसरे से इतना परिचित हो जाते हैं कि एक-दूसरे की अच्छाइयों की कद्र करना बंद कर देते हैं और फिर विवाह की सबसे बड़ी शत्रु- 'ऊब' पैदा हो जाती है।

लक्ष्य बनाने और उन्हें हासिल करने के बारे में ज़िग लिखते हैं कि दूसरे आपको अस्थाई रूप से रोक सकते हैं, आप अकेले ऐसे व्यक्ति हैं जो ऐसा स्थायी रूप से कर सकते हैं। साथ ही वे कहते हैं कि यदि आप कुछ बड़ा करने की उम्मीद रखते हैं तो आपको अपने लक्ष्य की दिशा में प्रतिदिन कार्य करना चाहिए।

जीवन में परिपक्वता के बारे में लिखा है कि शिष्ट व परिपक्व बनें और याद रखें, यदि आप पराजय से सीखते हैं तो आप वास्तव में पराजित नहीं हुए। इसके अलावा ज़िग लिखते हैं कि हर 'बुरी' आदत दबे पाँव आती है और धीरे-धीरे आप पर इस तरह हावी हो जाती है कि इससे पहले कि आप यह जानें कि आपकी यह आदत है, आप आदत के वश में हो जाते हैं। जीवन में सफलता के बारे में पुस्तक में लिखा गया है कि यह अच्छा हाथ मिले होने से नहीं मिलती। सफलता आपको मिले हुए हाथ को लेकर उसका अपनी सर्वोत्तम योग्यता के अनुसार उपयोग करने से निर्धारित होती है।

इसके अलावा पुस्तक चेतन और अवचेतन मस्तिष्क के कार्य और परिणामों का जिक्र करती है कि कैसे हम चेतन मस्तिष्क से कोई क्रिया नियमित रूप से इनपुट करते हुए उसे अवचेतन मस्तिष्क में खिसका सकते हैं ताकि बाद में वह हमारे जीवन की आदत ही बन जाए। विपरीत परिस्थितियों, सकारात्मक नजरिया, आय-संपत्ति-बचत इत्यादि पर भी प्रकाश डाला गया है।

इस तरह से ज़िग ज़िग्लर की यह पुस्तक सरल रूप से उन तमाम विषयों पर बात करती है जिन्हें एक पाठक आत्म-विकास की किसी पुस्तक में खोजता है। यह अध्यायों में बांटी हुई, तथ्य्परख, विषयकेंद्रित, विभिन्न जीवनोपयोगी सिद्धांत सिखाने वाली, हालाँकि जरुरत से कुछ अत्यधिक विस्तारित किन्तु साथ ही अत्यधिक प्रेरक, प्रभावशील और सार्थक पुस्तक है। इसे इसलिए पढ़ा जाना चाहिए कि हम किसी तीसरे पक्षकार के तौर पर अपना आत्म-अवलोकन करना चाहें जो अन्यथा उतना व्यावहारिक व सार्थक प्रतीत नहीं होता। उम्र के आखिरी पड़ाव पर इसे पढने वाले लोगों ने यह तक कहा है कि काश उन्होंने इसे 20 की उम्र में पढ़ा होता। इस तरह युवकों, विद्यार्थियों, गृहणियों, नव-उद्यमियों के लिए यह एक सकारात्मक, सार्थक और प्रभावकारी पुस्तक है।

और आखिर में...

"हम प्रसन्न, खुशमिजाज़, शालीन व सफल होना चुन सकते हैं। जब हम अपनी आदतें चुनते हैं, तभी यह चुनाव कर लेते हैं। जब हम आदतें बना लेते हैं, तब वे हमें बनाती हैं। हम अपने 'चरित्र' का निर्माण हर रोज इकठ्ठा की गई आदत की इंटों से करते हैं। हर ईंट एक छोटी-सी चीज लग सकती है, परन्तु इससे पहले कि हमें इसकी जानकारी हो पाये, हम उस घर को शक्ल दे चुके होते हैं, जिसमें हम रहते हैं।"

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