Thursday, December 27, 2018

पुस्तक समीक्षा : बड़ी सोच का बड़ा जादू

..और डेविड जे. श्वार्ट्ज की पुस्तक 'बड़ी सोच का बड़ा जादू' समाप्त की। मेरी पढ़ी गई पिछली दो पुस्तकों की तरह यह पुस्तक भी आत्म-विकास श्रेणी से है और जो व्यक्तित्व विकास, सकारात्मक सोच, परिश्रम पर जोर देने और जो भी आप करते हैं उसे पसंद करने इत्यादि मूलभूत सकारात्मक दृष्टिकोण संदर्भित विषयों पर केन्द्रित है।

इसके बारे में मेरी व्यक्तिगत राय यहीं है कि 1959 में जब इसका सबसे पहला संस्करण छपा था, जरुर तब इसने लाखों लोगों को प्रभावित किया लेकिन आज के सन्दर्भ में इसे अपडेट नहीं किया गया है। आज जब हम अपने डिजिटल वातावरण में हर तरफ प्रेरणादायी चलचित्र, किस्से, तथ्य, पोस्ट्स और ब्लोग्स देख-पढ़-सुन रहे हैं, यह पुस्तक जिस पठनीय सामग्री, जीवन-सिद्धांतों और आवश्यक तत्वों का प्रयोग करने की बात कहती हैं, वह आज के सन्दर्भ में सामान्य से नियम लगने लगते हैं जिनमें से अधिकांश हम पहले से जानते हैं। इससे पुस्तक एकदम नीरस और फीकी जान पड़ती है। साथ ही पुस्तक किसी सिखाये जा सकने वाले सिद्धांतों के अध्यायों के किसी क्रमबद्ध प्रारूप में भी नहीं होने से इसे समाप्त कर देने पर तमाम समीकरण अदृश्य हो जाते हैं। यानि एक अध्याय का अगले अध्याय से कोई जुड़ाव नहीं, हर अध्याय जैसे एक अलग किताब हो। क्रमबद्धता होने पर आप एक के बाद एक, अध्यायवार, तमाम तकनीकों को बाद में कभी भी अपने ध्यान में ला सकते हैं। इसके अलावा व्यक्तित्व विकास या सेल्फ-हेल्प की जिस श्रेणी में यह पुस्तक है, वहाँ उदाहरणों का प्रयोग अनिवार्य होता है और बार-बार होना चाहिए, किन्तु इस मामले में भी पुस्तक में लगभग गिने-चुने उदाहरण देखने को मिलते हैं और हमें सिर्फ थ्योरी पर ध्यान केन्द्रित करना पड़ता है। किन्तु फिर भी यदि कोई इस श्रेणी की पहली पुस्तक के तौर पर 'बड़ी सोच का बड़ा जादू' पढ़ता हो, तो उसे यह काफी पसंद आएगी। अध्यायों का क्रमवार आपस में जुड़े न होना दूसरी प्रकार से देखा जाये तो इसलिए अच्छा भी कहा जा सकता है कि पुनः पुस्तक उठाकर कहीं से भी पढ़ी जा सकती है। यह विद्यार्थियों, छोटे और मंझले कारोबारियों और गृहणियों के लिए एक बेहतर पुस्तक है।

खैर, बात करते हैं पुस्तक में अलग-अलग अध्यायों में दिए तरह-तरह के ज्ञान-कोष की। मैं समूची पुस्तक से बिन्दुवार अहम् तथ्यों को संकलित कर एक सारांश प्रस्तुत करता हूँ, जो इस प्रकार से है :

  • पूछने और सुनने की आदत डालें। याद रखें: बड़े लोग लगातार सुनते हैं और छोटे लोग लगातार बोलते हैं।
  • अपने मस्तिष्क को व्यापक बनाएँ। दूसरों के विचारों से प्रेरणा लें। ऐसे लोगों के साथ उठे-बैठें, जिनसे आपको नए विचार, काम करने के नए तरीके सीखने को मिल सकते हों।
  • माहौल के प्रति सचेत बनें। जिस तरह अच्छा भोजन शरीर को शक्ति देता है, उसी तरह अच्छे विचार आपके मस्तिष्क को शक्ति देते हैं। दमनकारी शक्तियों, नकारात्मक लोगों, छोटी सोच वाले लोगों से सचेत रहे और इनके चक्कर में न आएँ।
  •  अपनी असफलता के लिए दूसरों को दोष मत दीजिये। याद रखें: 'हारने के बाद आप जिस तरह से सोचते हैं, इसी बात से तय होता है कि आप कितने समय बाद जीतेंगे।'
  • परिस्थितियों के आदर्श होने का इंतजार मत कीजिये। वे कभी आदर्श नहीं होंगी। भविष्य की बाधाओं और कठिनाइयों की उम्मीद कीजिए और जब वे आएँ तब आप उनको सुलझाने का तरीका खोजिये।
  • असफलता का अध्ययन करें, ताकि आप सफलता की राह पर आगे बढ़ सकें। जब आप हारें तो उस हार से सबक सीखें और अगली बार पुनः जीतने की तैयारी करें। अपनी गलतियाँ और कमजोरियाँ खोजें और सुधारें।
  • अपने आप में निवेश करें। ऐसी चीज़ें खरीदें जिनसे आपकी मानसिक योग्यता और शक्ति बढ़े। शिक्षा में निवेश करें। विचारशील सामग्री में निवेश करें।
  • कोई भी काम करने से पहले खुद से यह सवाल पूछें : "अगर मैं सामने वाले की जगह होता, तो मैं इस बारे में क्या सोचता?" जिन्हें आप प्रभावित करना चाहते हैं, उन लोगों के नजरिये से चीज़ों को देखें। दूसरों से वहीं व्यवहार करें जो आप अपने लिए चाहते हैं।
  • अपने आप से बात करने के लिए समय निकालें और अपने चिंतन की प्रबल शक्ति का दोहन करें। एकांत के बहुत फायदे होते हैं। इसका उपयोग अपनी रचनात्मक शक्ति को मुक्त करने में करें। हर दिन सिर्फ सोचने के लिए कुछ समय अकेले गुजारें।
 और आखिर में प्युबिलिअस साइरस के शब्दों में...

"बुद्धिमान मनुष्य अपने दिमाग का मालिक होता है
और मूर्ख इसका गुलाम।"


 

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