the tourist sees what he has come to see."
- Gilbert K. Chesterton
ज़िन्दगी कुछ रही तो नौजवानी फिर कहाँ.."
मेरा ब्लॉग.. मेरी डायरी..
हाल ही में 8 दिसंबर को एक अंग्रेजी फ़िल्म देखी, नाम था- It's a Wonderful Life. न तो ये कोई नवीनतम फ़िल्म थी न ही हिन्दी डब्ड और न ही रंगीन। यह 1946 में आई एक ब्लैक-एण्ड-व्हाईट फ़िल्म थी, जिसके बारे में काफी सुना-पढ़ा था इसलिए देखने का कौतूहल पैदा हुआ।
किन्तु देखने के बाद वाकई यों लगा जैसे यह फ़िल्म अनंतकालीन (यानी जिसकी कोई उम्र न हो, चिरयुवा) फ़िल्म थी जो आज भी उतनी ही जरूरी है जितनी तब थी जब यह रिलीज़ हुई। इसे देखते वक़्त क्लाइमैक्स के ऐन पहले बेहतरीन अभिनेता- जिम कैरी की मेरी सबसे पसंदीदा फ़िल्म 'ब्रूस ऑलमाइटी' की याद ताज़ा हो जाती है। It's a Wonderful Life हर इंसान को जरूर एक बार देखनी चाहिए। यह आपके थके हुए कंधों को वो आराम देती है जो किसी ऐलोपैथी दवा में नहीं मिल सकता। यह आपकी आत्मा को झिंझोड़ती है, हताश इरादों में नई उमंग लाती है, आपके नकारात्मक हो चुके नज़रिये को सकारात्मकता का एक पुट देती है, कठिन रास्तों पे टूट चुके साहस को पुनः संगठित कर एक ऐसा हौसला देती है जो कोई भी जीव अपने नन्हे नवजात को उसके पैरों पर खड़े करने और आगे बढ़ने के लिए देता है।
यह जॉर्ज बैली की कहानी है, जो अपने जीवन में रोज नई मुसीबत झेलता है, सपने देखता है, उन्हें टूटते देखता है, लड़खड़ाता है, ठहरता है, बिखरता है, सम्भलता है और पुनः बिखरता जाता है। धीरे-धीरे निराशा में कुंठित होता जाता है और एक समय ऐसा आता है जब हर कोई ईश्वर से उसके लिए प्रार्थना करता है कि वो जॉर्ज के साथ न्याय करे, उसे सही राह दिखाए। क्रिसमस की एक रात जब पूरी तरह से आर्थिक और मानसिक दिवालिया हो जाने पर जॉर्ज नदी पर स्थित एक पुल से कूदकर अपनी इस दुःखद कहानी को खत्म करने ही वाला होता है तभी स्वर्गलोक में ईश्वर इस एक शख्स के लिए अपने पास आई अनेकों प्रार्थनाओं की ओर ध्यान देकर तुरंत एक अवतार को वहाँ भेजता है। उसके बाद जो संदेश आगे की कहानी हमें देती है उसे सीमित शब्दों में लिखकर हूबहू उसी प्रकार से प्रदर्शित करना बिल्कुल असंभव और अनुचित है। इसे चलचित्र रूप में ही देखा जाना चाहिए।
इसे हर उस शख्स को एक बार जरूर देखना चाहिए जो ज़िन्दगी की आपाधापी में खुद को पीछे छोड़ता जा रहा हो, जो अंदर ही अंदर हारता और टूटता जा रहा हो और जो थोड़ी-बहुत अंग्रेजी समझता हो। कुछ फिल्में होती है जो आपको सही दिशा देने का माद्दा रखती है, जो आने वाले बरसों तक आपको याद रहती है, बार-बार आंखों के सामने आती है, कानों में गूंजती रहती है, जो आपके जहन पर सकारात्मक प्रभाव डालती है, जो आपकी अंतरात्मा से प्रत्यक्ष वाद करती है और इसे जगाती है यदि यह सुप्तावस्था में हो। ऐसी ही एक फ़िल्म है - It's a Wonderful Life.
और अंत में..
"Each man's life touches so many other lives. When he isn't around he leaves an awful hole, doesn't he?"
इक दुनिया अक्सर खोजता हूँ..
सभ्यताओं से परे,
समाजों-रस्मों-रिवाजों से परे..
न जात न भेद,
जहाँ कोई 'दौलत' तक न हों..
न गुजरा न आने वाला कल हो,
जहाँ रोज बस आज हो..
संस्कृतियों का मिथ्या दम्भ न हों,
जहाँ सम जीव हो, सरल जीवन हो..
इक दुनिया अक्सर खोजता हूँ..
कटुताओं से परे,
द्वैष-परिवेश-विशेष से परे..
न आम न खास,
जहाँ कोई 'ओहदा' तक न हो,
न सूद हों न सूदन हों,
जहाँ सिर्फ एक ईश्वर हो..
भाँति-भाँति के आडम्बर न हों,
जहाँ नम चित्त हो, नयन पावन हों..
इक दुनिया अक्सर खोजता हूँ..