Sunday, October 27, 2013

कुर्सी के सौदागर

(केवल गंदे नेताओं पर लिखी एक कविता...
इसलिए आपत्ति केवल वे ही उठाएं जो इस श्रेणी में आते हों...)
पैसों के मजहब से आये हैं ये
इनका दिल कभी नर्म नहीं होता
ये कुर्सी के वो सौदागर है
जिनका कोई देश कोई धर्म नहीं होता

वतन की अस्मत भले ताक़ पे हो
इनके लिए वो अपमान नहीं होता
ये वतन के वो नमकहराम है
जिनका कैसा भी कोई ईमान नहीं होता
ज़हरीली दुनिया के काले नाग है ये
इनका दामन कभी पाक नहीं होता
ये काली किसी दुनिया के वो कलंक है
जिनका नाम-ओ-निशान खाक नहीं होता
हमारी कौम की गन्दी पैदाइश है ये
इनके लिए नरक में भी स्थान नहीं होता
ये जहाँ की हर गाली के वो हकदार है
जिनका श्मशान में भी गान नहीं होता...

No comments:

Post a Comment